सार
शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी देवी की साधना-उपासना से सभी तरह की परेशानियां दूर होती हैं। इनकी उपासना से मुकदमों में फंसे लोग, जमीनी विवाद, शत्रुनाश आदि संपूर्ण मनोरथों की प्राप्ति होती है और भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। भगवान शिव द्वारा प्रकट की गई दस महाविद्याओं में प्रमुख आठवीं महाविद्या “माता बगलामुखी” देवी हैं। माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं यानि यह अपने भक्तों के भय को दूर करके उनके शत्रुओं का नाश करती हैं।
माता बगलामुखी की उपासना शत्रुनाश, वाक-सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए की जाती है। यही कारण है कि माता बगलामुखी को सत्ता की देवी भी कहा जाता है। नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हो या सिंधिया घराना, राजनेताओं से लेकर फिल्म जगत के सितारों इन सभी को देवी का अनुष्ठान व गुप्त पूजा अर्चना कराते हुए देखा गया है।
मां बगलामुखी जी के संदर्भ प्रचलित कथा
पूर्वकाल में महाविनाशक तूफान से सृष्टि नष्ट होने लगी। चारों ओर हाहाकार मच गया। प्राणियों की रक्षा करना असंभव हो गया। यह महाविनाशक तूफान सब कुछ नष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देखकर पालनकर्ता विष्णु चिंतित हो महादेव शिव को स्मरण करने लगे। शिव ने कहा कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता। अतः आप शक्ति का ध्यान करें।
विष्णु जी ने ‘महात्रिपुरसुंदरी’ को ध्यान द्वारा प्रसन्न किया, देवी विष्णु जी की साधना से प्रसन्न होकर सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती हुई प्रकट हुईं और अपनी शक्ति के द्वारा उस महाविनाशक तूफान को स्तंभित कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया। तब जाकर सृष्टि का विनाश रुका।
देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं।
माता बगलामुखी के प्रमुख मंदिर
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्य प्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) और नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) में स्थित हैं।
1962 के युद्ध में मां बगलामुखी के नाम से कराया गया यज्ञ
सन् 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध हुआ था तब मां पीतांबरा पीठ के स्वामी जी ने फौजी अधिकारियों व तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी का 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था।
ऐसा बताया जाता है कि 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी दतिया में बनी हुई है। साथ ही यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख है।
कोरोना काल मे घर रहकर कैसे करे देवी की आराधना
कोरोना काल मे कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए सभी साधक घर पर ही रहकर देवी की आराधना करें। बगलामुखी जयंती के अवसर पर माता बगलामुखी की विशेष कृपा पाने के लिए सर्वप्रथम पूजा वाले स्थान को गंगाजल से पहले पवित्र कर लें तत्पश्चात उस स्थान पर एक चौकी रख उस पर माता बगलामुखी की मूर्ति/तस्वीर को स्थापित करें।
पीले रंग के पुष्प से उनकी विधि-विधान से पूजा करें। मां बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री प्रसाद, मौली आदि सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का ही प्रयोग करें। साथ ही भोग के रूप में बेसन के लड्डू चढ़ाएं।
साधनाकाल मे साधक निम्न सावधानियां रखें
पीले वस्त्र धरण करें। मंत्र का जप करते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। एक समय भोजन करें।
मां बगलामुखी मंत्र
मां बगलामुखी का 36 अक्षरों वाला मंत्र
‘ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्लीं ॐ स्वाहा’।
शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी देवी की साधना-उपासना से सभी तरह की परेशानियां दूर होती हैं। इनकी उपासना से मुकदमों में फंसे लोग, जमीनी विवाद, शत्रुनाश आदि संपूर्ण मनोरथों की प्राप्ति होती है और भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
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