Click here for English version
वैसे तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र भारत मताधिकार के सिद्धांतों पर आधारित है परंतु यह भी सच है की चुनाव मे जीत का मंत्र राजनेताओं के ज्योतिषियों के अपने सिद्धांतों पर भी आधारित होता है।
जनता से झूठे वादे हों या विरोधियों पर तीखे हमले या फिर धुआंधार चुनावी प्रचार-प्रसार, पर बस यही चुनाव में जीत का मंत्र नहीं है। असल सिंहासन जीतने का मंत्र पाने के लिए तो देश के राजनेता ज्योतिषियों का रुख करते हैं। चुनाव के आवेदन की तारीख हो , विरोधियों को हराने के लिए तंत्र-मंत्र पूजा-पाठ हो या फिर जीत के बाद शपथ ग्रहण का मुहूर्त, सभी अपने ज्योतिषी के इशारे पर यह कार्य करते हैं। वैसे तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत मताधिकार के सिद्धांतों पर आधारित है परंतु यह भी सच है की चुनाव मे जीत का मंत्र राजनेताओं के ज्योतिषियों के अपने सिद्धांतों पर भी आधारित होता है।
भारतीय राजनीति और ज्योतिष
राजनेताओं और ज्योतिषियों का रिश्ता आजादी के दौर का है या यूं कहें कि आजादी के दिन से ही चला आ रहा है । 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था, लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को 14-15 अगस्त में से किसी दिन अपनी-अपनी आजादी के कार्यक्रम निर्धारित करने को कहा। ज्योतिष विज्ञान में आस्था रखने वाले डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने देश के भविष्य व अखंड संप्रभुता के लिए महाकाल की नगरी उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सूर्यनारायण व्यास से आजादी के लिए उपयुक्त मुहूर्त चुनने के लिए निवेदन किया। इसी बीच पाकिस्तान ने 14 अगस्त को अपनी स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा कर दी। भारतीय राजनेताओं ने तब से अब तक चुनाव जीतने के लिए समय समय पर ज्योतिष का सहारा लिया।
राजनीति, चुनाव जीतकर जनता की सेवा नही बल्कि आज एक बड़ा व्यापार है। यदि करोड़ो रुपए प्रचार प्रसार में खर्च कर प्रतिनिधि नहीं जीता, तो यह एक महंगा खेल साबित होता है। यही कारण है कि करोड़ों रुपए की कार के नंबर से लेकर, नामांकन की तारीख हो या शपथ का मुहूर्त तक सभी अपने ज्योतिष द्वारा अपनी कुंडली की ग्रह चाल पर आधारित सलाह पर ही चलना पसंद करते है।
तांत्रिक चंद्रास्वामी आखिर भारतीय राजनीति में इतने खास क्यों थे?
चंद्रास्वामी एक तांत्रिक थे और भारतीय राजनीति के सबसे विवादास्पद किरदारों में से एक थे। दुनिया के कई देशों के ताकतवर लोगों पर उनका खासा प्रभाव था, खासकर राजनेताओं पर। इसमें ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का नाम भी शामिल था। पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक ‘वॉकिंग विद लायंस’ में लिखा है कि चंद्रास्वामी ने मार्गरेट थैचर के ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी, जो बाद में सच भी साबित हुई थी। चंद्रास्वामी की पहुंच सिर्फ भारत, ब्रिटेन और फ्रांस तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि ब्रूनेई के सुल्तान, बहरीन के शासक और इसके अलावा कहते हैं कि हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिजाबेथ टेलर भी उनकी भक्त थीं।
अज्ञात का भय
राजनीति मे अज्ञात का भय ही सबसे बड़ा कारण है जो सत्ता पर रहते हुए हमेशा ही बना रहता है। हाथ में सत्ता की अनिश्चितता कई शक्तिशाली राजनेताओं को झकझोर देती है। जीत के अलावा छिपे हुए दुश्मनों को हराने और उन्हें हमेशा के लिए सफलता के रास्ते से हटाना भी राजनीति में राजनेताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि बगलामुखी अनुष्ठान हो या कोई और तांत्रिक अनुष्ठान चुनावी मौसम मे देश के ज्योतिषी व्यस्त दिखाई पड़ते है। मां बगलामुखी की उपासना शत्रुनाश, वाक-सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए की जाती है। यही कारण है कि माता बगलामुखी को सत्ता की देवी भी कहा जाता है। नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हो या सिंधिया घराना, राजनेताओं से लेकर फिल्म जगत के सितारों इन सभी को देवी का अनुष्ठान व गुप्त पूजा अर्चना कराते हुए देखा गया है।
ज्योतिषियों के लिए चुनाव का मौसम लगभग उत्सव का होता है और जबकि लोकतंत्र को लोगों द्वारा, लोगों पर और लोगों के लिए माना जाता है, परंतु राजनेताओं ने लोगों शब्द को ज्योतिष से बदल दिया है। देश के सबसे बड़े राज्य में जल्द ही चुनाव है और विरोधियों को मात देने के लिए राजनेताओं की गोपनीय तैयारी नवरात्रि से ही चालू हो चली है।
Published In: ww.amarujala.com