Jyotish Aur Daan: ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार दान करना किसी यज्ञ करने के समकक्ष है और यज्ञ करने के बाद जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल मनुष्य को किसी को दान करने से मिलता है। वैदिक ज्योतिष में दान का विशेष महत्व बताया गया है। दान ना केवल बुरे ग्रहो के दुष्परिणामो को दूर करता है साथ ही जन्मकुंडली में उपस्थित दोषों के दुष्प्रभाव को भी दूर करता है। दान का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है।
Jyotish Shastra ke anusar Daan Ka Mahatv: ज्योतिष का उद्देश्य लोगों का मार्गदर्शन करना और उनके जीवन का उद्देश्य बताना है। हमारे शास्त्रों और ज्योतिषियों द्वारा बुरे ग्रहो के दुष्परिणामो के प्रभावों को नष्ट करने के लिए दान का विशेष महत्व बताया गया है। वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह जीवन के विशिष्ट पहलुओं को नियंत्रित करता है, जो प्रतीकात्मक और व्यावहारिक रूप से होता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार दान करना किसी यज्ञ करने के समकक्ष है और यज्ञ करने के बाद जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल मनुष्य को किसी को दान करने से मिलता है। किसी भी जन्म में किए गए “कर्म” के बुरे प्रभावों को समाप्त करने के लिए सर्वोत्तम उपाय “दान” ही है।
दान को एक दिव्य अर्पण के रूप में देखा जाता है, जो ब्रह्मांड में संतुलन पैदा करता है और हमें उच्चतर चेतना के क्षेत्रों से जोड़ता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने में मदद मिलती है और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। जीवन में अधिक समृद्धि लाने की कुंजी ब्रह्मांड को कुछ वापस देना है। दान व परोपकार का दृष्टिकोण यह याद दिलाता था कि असली समृद्धि केवल इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपने क्या प्राप्त किया, बल्कि इस पर निर्भर करती है कि आपने दूसरों के साथ क्या साझा किया।
वैदिक ज्योतिष में दान का विशेष महत्व बताया गया है। दान ना केवल बुरे ग्रहो के दुष्परिणामो को दूर करता है साथ ही जन्मकुंडली में उपस्थित दोषों के दुष्प्रभाव को भी दूर करता है। दान का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि, आपके द्वारा किए गए दान का लाभ केवल जीवन ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद भी मिलता है। क्योंकि मृत्यु के बाद परिवार, मित्र, धन, दौलत, संपत्ति जब कुछ पृथ्वीलोक पर ही छूट जाते हैं। लेकिन परलोक में केवल दान ही उसके साथ मित्रता निभाता है यही पुण्य कर्म काम आते हैं।
दान करते समय प्रत्येक ग्रह से संबंधित तत्वों को समझना आवश्यक है। जब हम किसी विशिष्ट ग्रह से संबंधित दान करते हैं, तो हम जन्मकुंडली में ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्ति पा सकते हैं। प्रत्येक ग्रह जीवन के कुछ पहलुओं को नियंत्रित करता है, और दान क्रियाओं के माध्यम से, जैसे किसी विशेष ग्रह से संबंधित वस्तुओ का दान, हम उसके ऊर्जा को सामंजस्यित कर सकते हैं, उसके नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकते हैं और अपने जीवन में सकारात्मकता और सफलता को आमंत्रित कर सकते हैं जो हमारे भाग्य को आकार देती हैं।
ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के अलावा, दान आपके कर्म संतुलन में सकारात्मक योगदान करता है। इस तरह की साधारण उदारता हमें अपने आप को बेहतर रूप में विकसित करने में मदद कर सकती है और एक संतुलित जीवन जीने की ओर मार्गदर्शन कर सकती है।
ज्योतिषी से परामर्श लेकर करें दान
एक ज्योतिषी आपको दान देने के सर्वोत्तम समय और तत्वों के बारे में मार्गदर्शन कर सकता है। दान कब और कैसे करना चाहिए ताकि आप अपने ग्रहों के प्रभाव को प्रभावी रूप से संबोधित कर सकें। वे वस्तुएँ, अनाज आदि का चयन करे जो आपकी जन्मकुंडली के पाप ग्रह के दोष को दूर करे, अशुभ ग्रह की दशा अन्तर्दशा में उस से सम्बन्धित दान करे। दान को विशिष्ट तिथियों / मुहूर्तों पर किया जाना चाहिए जैसे अमावस्या, एकादशी और पूर्णिमा आदि।
शुद्ध भाव से करें दान: बिना किसी अपेक्षा या व्यक्तिगत लाभ के सच्ची दया और निःस्वार्थ भाव से दान करें। मजबूती में किसी तरह का दान न करें। ऐसा दान नष्ट हो जाता है।
जरूरतमंदों को प्राथमिकता दें: अपने दान को उन लोगों को दें जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। योग्य और सही लोगों और संस्थाओं की मदद करना, असहाय लोगों की मदद करना ही सच्चा धर्म है।
नियमित दान करें: सामर्थ्यनुसार, नियमित रूप से दान देने की आदत डालें। विशेष रूप से ग्रहों के गोचर परिवर्तन, दशा महादशा परिवर्तन के दौरान दान अवशय करें।
गुणवत्तापूर्ण वस्तुएँ ही दान करें: सुनिश्चित करें कि आप जो वस्तुएँ दान कर रहे हैं, वे अच्छे स्थिति में हों, टूट-फूट या पुराने सामान का दान करने से आपके दान के लाभ में कमी आ सकती है।
प्रचार करने की कोशिश न करें: अपने दान कार्यों को गुप्त रखने का प्रयास करें। केवल श्रदधापूर्वक किया गया दान ही पुण्य कर्म की श्रेणी में आता है। इसलिए कहा जाता है कि, श्रदधापूर्वक किया गया दान ही पुण्य कर्म की श्रेणी में आता है। इसलिए कहा जाता है कि, दान ऐसा होना चाहिए कि एक हाथ से करें और दूसरे हाथ को भी पता न चले।
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